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✍️खान अशु
*ताबूत की आखिरी कील ठोक बैठे काका जी…!*
जब बिल्ली के भाग से टूटे छींके की तरह सिंहासन हाथ लगा था,
काका जी को कांग्रेसी और भाजपाई पत्रकार सूंघने की बीमारी लगी थी…!
प्रदेश इतिहास के सबसे बड़े पत्रकार नुकसानदायक शख्स बनने की महारत भी अठारह महीने की सरकार में उन्होंने बटोर ली थी…! बदमिजाजी का दंभ सरकार हाथों से सरक जाने के बाद भी नहीं गया…! कुछ दिन पहले ही अपने मन का गुबार ये कहकर निकाला था, मीडिया मेरे पास नहीं आए…! अब बद तमीजी की इंतेहा पर उतारू हैं…! समाज के कार्यक्रम को बिगाड़ने आए हैं, की तोहमत के साथ मीडिया को जलील ओ ख्वार करते हुए खदेड दिया गया…! चार लाइन की खबर छपवाने, एक सेकंड टीवी पर नजर आ जाने की गुहार लगाते मीडिया संस्थानों के चक्कर लगाने वाले, मीडियाकर्मियों की मिन्नतें करने वाले छुटभैया भी कलम और कैमरे वालों को कार्यक्रम स्थल से खदेड़ने के गुनाहगार बनने से नहीं चूके…! सादर आमंत्रण देकर कार्यक्रम कवरेज का बुलावा देने वाले आयोजक भी मेहमान बने काका जी के आदेश का पालन करने से बाज़ नहीं आए…!
दिल्ली दरबार से सवा दर्जन पत्रकारों के बहिष्कार का ऐलान होने के बाद अब चुनावी मैदान में आक्रोश लेकर घूम रहे काका जी ने ताबूत में आखिरी कील ठोक ली है…! कर्मकांड उस शहर में हुआ है, जहां मीडिया एकता की मिसाल कायम है…! काका जी को एकमुश्त बहिष्कार का ऐलान इस दबंग मीडिया ने किया, कर दिखाया…! काका जी के इस तिरस्कार की गूंज मालवा निमाड़ के उन विधानसभा क्षेत्रों में तो गूंजेगी ही, जहां से उन्होंने इस आग को हवा दी है, इसका असर प्रदेश की हर उस विधानसभा तक भी जाएगी, जहां जहां काका अपनी थकी यात्रा लेकर जाने वाले हैं, इस बात को अवश्यंभावी माना जाना चाहिए…!
*पुछल्ला*
*निशाने पर धर्म*
एक सियासी दल ने मुंह से तालू लगाया, एक पुरातन धर्म को निशाने पर ले लिया। अब तक दूसरे राजनीतिक दल ने मुंह खोला और एक मजहब और उससे जुड़े लोगों को अनाप शनाप कह डाला। सियासत सियासत के खेल में धर्म, धार्मिक आस्थाएं, परंपराएं और लोगों की भावनाएं दांव पर लग रही हैं। हालात यही बने रहे तो किसी दिन हमारे आसपास सिर्फ सियासत ही बिखरी दिखाई देगी।
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*24/सितंबर/2023*